मैं अब भी खड़ा हूँ

  आकाश अगर ख़्वाब था जमीन  अगर जिम्मेदारी थी तो सामने सिर्फ तुम थी न तो मैं उड़ सका न तो मैं चल सका मैं सिर्फ खड़ा रहा और सामने सिर्फ सामने देखता रहा मैं सामने देखता रहा तब तक जब तक की एक रेत की गुबार न उठी और सबकुछ शांत न हो गया … पढ़ना जारी रखें मैं अब भी खड़ा हूँ

मैंने देखा हैं

मैंने देखा हैं माँ को मैंने देखा हैं मेरे छत से दिखते पहाड़ को नजदीक जाकर मैंने देखा हैं गंगा में उतरकर माँ गंगा को मैंने देखा हैं गमले में दीदी के द्वारा लगाये घृतकुमारी को मैंने देखा हैं वेंटिलेटर में रहते छोटे गौरये को मैंने देखा हैं शिव के उस पहाड़ में मौजूद झरने … पढ़ना जारी रखें मैंने देखा हैं

डार्क नाईट संदीप नैय्यर

'लड़कियों से ध्यान हट जाए, तो पढ़ाई-लिखाई में ध्यान आसानी से लग जाता है।' डार्क नाईट से 👆🏻 (हम जैसे लड़को के लिए पार लगाने वाली लाइन्स) कवर से डार्क नाईट मायथोलॉजिकल लगता हैं और चर्चाओं से एराटिक पर मुझे ये एडवेंचर्स भी लगा। 'डार्क नाईट' एक यात्रा हैं, एक अज्ञात मंज़िल की यात्रा, अपने … पढ़ना जारी रखें डार्क नाईट संदीप नैय्यर

कोई मिटाता हो मुझे

नहीं आती हिचकियाँ एक भी जैसे हरकोई भुलाता हो मुझे पीछे मुड़ जाता हूँ बार-बार की शायद कोई बुलाता हो मुझे हवाएं बालों को सहलाती है जैसे कोई सुलाता हो मुझे शराब भी आ जाती है अपनेआप होंठो तक जैसे कोई पिलाता हो मुझे आँखे बंद होने पर भी वो दिखाई दी जैसे कोई दिखाता … पढ़ना जारी रखें कोई मिटाता हो मुझे