मैं अब भी खड़ा हूँ

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आकाश
अगर
ख़्वाब था

जमीन 
अगर
जिम्मेदारी थी

तो
सामने
सिर्फ
तुम थी

न तो
मैं
उड़ सका

न तो
मैं
चल सका

मैं
सिर्फ
खड़ा रहा
और
सामने
सिर्फ सामने
देखता रहा

मैं
सामने देखता रहा
तब तक
जब तक की
एक रेत की
गुबार न उठी
और सबकुछ
शांत न हो गया

फिर सामने
दूर से दूर तक
रेत के रेगिस्तान
के सिवा
कुछ न था

मैंने ऊपर देखा
पर अब ऊपर
आकाश तो था
पर एक
सूना आकाश

मैंने नीचे देखा
पर अब नीचे
जमीन तो थी
पर एक
बंजर जमीन

इस
सूने आकाश
और
बंजर ज़मीन
के बीच
मैं
अब भी
खड़ा हूँ

 

© – विकास महतो

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