जीन-एक बेटी की कहानी

‘जीन एडविन ग्राहम’ से मिल आया हूँ, अफजल अहमद के द्वारा रचित ‘जीन-एक बेटी की कहानी’ सिर्फ जीन की कहानी नहीं है, ये कहानी है हमारे समाज की, ये कहानी है संजू के गर्लफोबिया की, ये कहानी है राजन के निःस्वार्थ प्रेम की, ये कहानी है दायरों में बंधी आंसू की, ये कहानी है रोहन-सुमित-ऋषभ की और ये कहानी है एक बेटी की जिसके माँ-बाप को उसके जन्म के समय ही मार दिया गया था पर फिर भी उसके पिता संजू जिन्दा है ।

कहानी शुरू से ही रफ्तार में रहती है, ये आपको पकड़ी रखती है, खासकर के गर्लफोबिया वाले पार्ट तक ये आपको जकड़े रखती है पर उसके बाद इसकी रफ़्तार थोड़ी कम होती है पर अंत तक में ये अपनी पहले की रफ्तार जैसी पकड़ लेती है।

गुलशन नन्दा और प्रेमचन्द को पढ़ने वाले को इस किताब में ‘गुलशन नन्दा और प्रेमचन्द’ दोनों मिल सकते है।

कहानी पढ़ने के दौरान आपको कहानी में सिर्फ जीन ही मुख्य किरदार लग सकती है पर मुझको जीन के साथ-साथ संजू भी मुख्य किरदार लगा। जीन और संजू का चित्रण बहुत ही सजीव तरीके से किया गया है। आप आसानी से दोनों किरदारों के साथ अटैच हो जाते है।

मै किताब की मेरी सबसे ज्यादा कुछ पसंदीदा पंक्तियां आपके साथ साझा करता हूँ –

हर इतवार की शाम चार बजे दूरदर्शन पर अच्छी फ़िल्म आती थी और लोग एकजुट होकर देखते थे।

स्कूल के दिनों में टीचर्स के बीच मशहूर होना ‘बरमूडा ट्रायएंगल’ के मशहूर होने से भी ज़्यादा मायने रखता था।

कामयाबी पचा लेना भी अपने आप में एक कामयाबी ही है जो सबके वश की बात नहीं होती।

“ग्याहर खिलाड़ी चाहिए थे यार। यह तो ग्यारह लोग हुए।”

लेकिन मीलों चलकर भी एक आदमी उतना नहीं थकता जितना उसे वापसी के चंद कदम थका देती हैं!”

‘जीन-एक बेटी की कहानी’ में गलतियाँ न के बराबर थी पर फिर भी जो कुछ चीजे मुझे खटकी वो ये थी की कंही-कंही ऐसा लग रहा था कि जैसे कुछ दृश्य अपने आप को बार-बार दोहरा रहे है और कंही-कंही कहानी की जबर्दस्ती विस्तार दिया जा रहा है, इसके अलावा पूरी की पूरी किताब जबर्दस्त है, अंत में किताब आपको भावुक करते हुए गम्भीर कर देती है।

सामाजिक और मॉडर्न प्रेमचन्द स्टाइल को पढ़ने वाले इस किताब को जरूर पढ़ें।
9.5/10

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